Dr. Pradeep Kumwat

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Monday 12 January 2015

Saral Ho Jaiye

  डाॅ. प्रदीप कुमावत, लेखक, षिक्षाविद्, सम्प्रति निदेषक , आलोक संस्थान, उदयपुर, राजस्थान
सरल हो जाईये
गत दिनों मेरे पास एक निमंत्रण पत्र आया जिसकी भाशा इतनी कठिन थी की सामान्य व्यक्ति को षब्द कोष की सहायता लेनी पड़े। जीवन में क्या श्रेश्ठता का मतलब कठिनता है? हाँ कोई व्यक्ति कठिनाईयों से झुझकर आगे बढ़ता है वह सफल जरूर होता है और उसका संघर्श उसे सम्मान दिलाता है लेकिन व्यक्ति का कठिन हो जाना, असम्भव हो जाना एक ऐसी  बात है जो सकारात्मक नहीं मानी जा सकती इसलिये जब कोई भी धर्म हो, कोई भी धार्मिक पुस्तक हो यहीं संदेष देती है कि व्यक्ति को सहज और सरल होना चाहिये। सहज और सरल होना कहना जितना सरल है हो जाना उतना ही कठिन है।
यदि हम किसी संगठन या संस्था से जुड़े होते है और हमंे किसी कार्यक्रम में जाने का मौका मिलता है तो हम प्रवेष द्वार के बाहर अपने-अपने व्यक्तित्व को, अपने-अपने पदांे को बाहर छोड़कर एक संगठन या संस्था के सदस्य नाते हम उस प्रवेष द्वार में घुसते है तो हमारा, तुम्हारा कोई नहीं होता हम सब एक टीम की तरह होते है। हम किसी भी पद पर हो, हमारे पास कितना भी पैसा हो पर जब हम किसी संगठन या संस्था  के सदस्य के नाते बैठते है तो अध्यक्ष को हम ऊँचा सम्मान देते है वह हमसे ऊँचे स्थान पर बैठता है और जब वो ऊँचे स्थान पर बैठता है तो उसे भी यह अहंकार नहीं होता कि वह ऊँचा है वह सिर्फ जिम्मेदारी निभाने के लिये ऊपर की ओर बैठा है बाकी के लोग उसको सहयोग के लिये नीचे की ओर बैठे है। जो व्यक्ति सहज, सरल होना सीख जाता है वो व्यक्ति ऊँचाईयांे को पा जाता है। यह एक षाष्वत् सत्य है।
एक प्राचीन कथा है। कथा अनुसार एक बार एक गुरू के पास राजा पहुँचता है और वह कहता है कि गुरूजी ईष्वर कहाँ है? तब गुरू उससे पुछते है कि मैं तो बता दूंगा पर तू यह बता कि कहाँ नहीं है? दोनों अपने-अपने उत्तरों की खोज में खो जाते है। राजा जब अपने राजमहल आता है तो यहीं बात अपने सभा में सभापतियों से पूछता है कि बताओं ईष्वर कहाँ है? यदि ईष्वर सब जगह है तो बताओं क्या इस लकड़ी के सिंहासन में है? यदि है तो तुम्हें कल तक सिद्ध करना होगा। वरना् तुम सब की गर्दन कलम कर दी जायेगी। सारे दरबारी हतप्रभ रह जाते है।
उसी दौरान द्वार पर खड़ा द्वारपाल मुस्करा रहा था। राजा ने उसकी मुस्कान को देख लिया। सभी दरबारी जब निकल जाते है तब राजा उस द्वारपाल को बुलाता है और कहता कि मैं जब सभी से ईष्वर की बात पूछ रहा था तब तुम मुस्करा रहें थे। यह सब लोग चिंता में थे कि यदि जवाब नहीं दिया तो कल सवेरे गर्दन उड़ा दी जायेगी। यद्यपि मैं ऐसा नहीं करता। तुम क्यों मुस्करायें? मुझे यह बताओं। तब उस द्वारपाल ने कहा कि मैं इसका उत्तर जानता हूँ। तुम उत्तर जानते है तो मुझे बताओं? तब उस द्वारपाल ने कहा कि राजन् प्रष्नों के उत्तर जानने के लिये आपको नीचे आना  होगा, क्योंकि ज्ञान की गंगा उल्टी प्रवाहित नहीं होती। ऊपर से नीचे आती है इसलिये आपको नीचे आना पड़ेगा। राजा नीचे की ओर आया। तब वह कहता है कि राजन आपको ऐसे ही उत्तर नहीं मिलने वाला। अब चूंकि गंगा नीचे बहती है तो मुझे ऊपर की ओर आसन पर जाना होगा। राजा को बहुत क्रोध आता है लेकिन फिर भी उसे कहता है कि कोई देख नहीं रहा है तुम उस सिंहासन पर बैठो। तब राजा उस द्वारपाल से कड़क आवाज में पूछता है कि अब बताओं जल्दी से। द्वारपाल फिर कहता है कि ऐसे नहीं राजन्। इसके लिये आपको थोड़ा विनम्र भाव से मुझसे निवेदन करना होगा तब ही मैं आपको ज्ञान दे पाऊँगा। राजा ने उससे बड़े ही विनम्र भाव से विनती कि। द्वारपाल ने फिर कहा राजन् ऐसे नहीं। ज्ञान प्राप्त करने के लिये गुरू की षरण में आना पड़ता है, आप मेरे चरण् का वंदन करो तो मैं आपको ज्ञान दे पाऊँगा कि ईष्वर है या नहीं? राजा का क्रोध सातवें आसमान पर था लेकिन उसे अपने प्रष्न के उत्तर की खोज थी। वह उसके चरणों में गिर पड़ा। और कहते है कि वह चरणों में जैसे ही गिरा उसे अपने जीवन की सारी समस्याओं के उत्तर मिल गये। क्यों कि ज्यों ही वह द्वारपाल के चरणों में गिरा तो राजारूपी अहंकार विसर्जित हो गया।
जिस दिन व्यक्ति का अहंकार विसर्जित हो जाता है वह परम् तत्वों को प्राप्त कर लेता है। द्वारपाल ने कहा राजन् उठिये मैं आपके प्रष्न का उत्तर देता हूँ? राजा ने कहा हे द्वारपाल! तू मेरा सबसे बड़ा गुरू है। आज तूने मुझे जीवन का वो सत्य दिखा दिया जो कोई नहीं सिखा सका। उस ज्ञान के लिये मै तेरा बहुत आभारी हूँ।
जीवन में व्यक्ति का जब अहंकार गिर जाता है, वह झुकना सीख जाता है तब वह सहज हो जाता है, सरल हो जाता है। जहाँ भी आपको कठिनाई महसुस हो, सरल हो जाईयेे, झुक जाईये, अपने अहंकार को विसर्जित कर दीजिये तब देखिये दुनिया आपके चरणों पर स्वतः झुकना षुरू कर देगी।
जो झुकता है वहीं बचता है। आंधी-तूफानों में जो पेड़ अकड़ कर खड़े रहते है वो पहली ही आंधी-तूफान में ध्वस्त हो जाते है जबकि वो घास के तिनके जो आंधी-तूफानों के साथ झुक जाते है वो तूफान के जाने के बाद फिर खड़े हो जाते है। यहीं जीवन का सत्य है।
मैं आप सभी साथियों से यहीं निवेदन करूँगा कि सहज हो जाईये, सरल हो जाईये।
जय भारत।

        डाॅ. प्रदीप कुमावत

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